- राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय में संस्कृति मंत्रालय का आयोजन
सुलतानपुर। सूर्य प्रकाश तिवारी की रिपोर्ट।संस्कृति मंत्रालय के सेंटर फार एडवांस रिसर्च ऑन डेवलपमेंट ऐंड चेंज एवं यूथ फॉर नेशन द्वारा क्रांतितीर्थ शृंखला के अंतर्गत बुधवार को राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय में '2047 का भारत मेरी परिकल्पना' विषय पर टेक्नोस्पीक प्रतियोगिता आयोजित की गई । जिसमें बीए पंचम सेमेस्टर की मुस्कान सिंह प्रथम , बीकाम की मांडवी तिवारी द्वितीय और आयुष मिश्र तृतीय स्थान पर रहे।
निर्णायक मंडल के संयोजक असिस्टेंट प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि ने पुरस्कारों की घोषणा करते हुए कहा कि 2047 में भारत तब विकसित हो पायेगा जब हम 1947 में देखे गये सपनों को पूरा कर पायेंगे।
प्रबंधक एडवोकेट बालचंद्र सिंह, प्राचार्य प्रोफेसर दिनेश कुमार त्रिपाठी ,आईक्युएसी निदेशक इन्द्रमणि कुमार, टेक्नो स्पीक के राष्ट्रीय समन्वयक सूरज सिंह ने निर्णायकों,विद्यार्थियों व अतिथियों को स्मृति चिन्ह व सम्मान पत्र देकर पुरस्कृत किया। निर्णायक मंडल में असिस्टेंट प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि , डॉ.नीतू सिंह व मनीष कुमार पाण्डेय शामिल रहे।
संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर प्रभात कुमार श्रीवास्तव व आभार ज्ञापन कंचन यादव ने किया। राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रमाधिकारी डॉ.हीरालाल यादव , डॉ.शिल्पी सिंह सहित विद्यार्थी व शिक्षक उपस्थित रहे।
बतौर मुख्य वक्ता टेक्नो स्पीक के राष्ट्रीय समन्वयक सूरज सिंह ने कहा कि हमारी तकनीक दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हो तथा देश में आदर्श नागरिक तैयार हों इसके लिए आगामी पचीस वर्षों में बेहतरीन और ठोस योजना के साथ काम करना होगा ।
बीए पंचम सेमेस्टर की मुस्कान ने कहा कि मेरा सपना है कि 2047 में भारत सुंदर , स्वच्छ और आत्मनिर्भर बने। जहां हर युवा देश के लिए पूर्ण समर्पित हो । एम ए के विद्यार्थी परमेंद्र ने कहा कि 2047 में हमारे पास बुजुर्ग नागरिकों की संख्या अधिक होगी । उनके लिए अभी से एक सटीक नीति बनाने की जरूरत है।
वैभव यादव ने कहा कि सभी शिक्षा संस्थानों को सुधारे बिना देश के विकास की कल्पना बेईमानी है। बीए पंचम सेमेस्टर के बाबी ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों को मजबूत किये बिना विकसित भारत की बात करना बेईमानी है। मांडवी तिवारी ने कहा कि मेरा मानना है 2047 तक महिलाएं सभी क्षेत्रों में निर्भीक होकर हिस्सेदारी कर सकेंगी ।
आयुष मिश्र ने कहा कि देश में ऐसे शिक्षण संस्थान होने चाहिए जो दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हों तभी हम विश्व गुरु की परिकल्पना साकार कर पायेंगे।
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