पांच लाशें चीख-चीखकर दे रहीं गवाही, पुलिस की जांच में हुआ बड़ा खेल,

मेरठ। सर्वेश पाण्डेय की रिपोर्ट|ऊपर पटाखों का गोदाम। नीचे साबुन फैक्टरी। सैकड़ों किलो बारूद के बीच रोज की रोटी कमाते गरीब। क्या ये सिर्फ हादसा है... नहीं। अगर मौके पर सिर्फ साबुन की फैक्टरी होती और धमाका हो जाता, तो ये हादसा था। लेकिन पटाखों के बारूद की चपेट में आकर पांच लोग मर गए हैं। इससे साबित हो जाता है कि शहर में बारूद का गोदाम का चल रहा था। शायद यही वजह है कि किसी पर आंच न आ जाए इसलिए एफआईआर से बारूद का गोदाम गायब कर दिया गया। लेकिन लहू इंसाफ मांगता है। पुलिस जिस पटाखे के गोदाम को गायब कर देना चाहती थी, वह खुद पुलिस की लिखा-पढ़ी में मौजूद है। इन पांच शवों के


पंचायतनामे में दर्ज है कि मौके पर साबुन बनाने की फैक्टरी व पटाखों का गोदाम था। ये पंचायतनामा सिर्फ इन पांच मजदूरों का नहीं है। यह कानून का भी पंचनामा है। प्रयाग साह, चंदन, सुनील ठाकुर, अयोध्या राम और रूपन साह की लाशें खामोश रहकर भी इस बात की गवाही दे रही हैं कि उनकी मौत महज सिर्फ एक हादसा नहीं है। ये कानून की भी मौत है। जो काम पुलिस-प्रशासन के बड़े-बड़े आला अधिकारी दो दिन में नहीं कर पाए, वो इन लाशों के पंचायतनामे ने कर दिखाया है। मौका-ए-वारदात पर मिले सबूत भी इस बात की चीख-चीखकर गवाही दे रहे हैं कि वहां पर पटाखों का जखीरा मौजूद था। लेकिन कानून को न मौका-ए-वारदात पर मिले सबूत दिखाई दिए और न ही लाशों का पंचायतनामा। हजारों किलोमीटर दूर से रोजी-रोटी कमाने आए ये मजदूर परदेसी हैं। शायद यही वजह हो कि लोहियानगर में पटाखा गोदाम में हुए धमाके में मरने वाले पांच लोगों को इंसाफ मिलने में इतनी देरी हो रही है। अब तक जो अधिकारी साबुन फैक्टरी में रखे मोबिल ऑयल और फिनाइल आदि की वजह से धमाके की बात कर रहे थे, उनकी इस थ्योरी को खुद पुलिस के पंचायतनामे ने फेल कर दिया है। लोहियानगर पुलिस ने घटना वाले दिन 17 अक्तूबर को सुबह 10 बजकर 50 मिनट पर जो अज्ञात लाशों का पंचायतनामा भरा है, उसमें उनकी मौत का कारण पटाखा स्टोर/साबुन फैक्टरी में आग से झुलसना बताया है। वहीं, इसी तारीख को शाम तीन बजकर 50 मिनट पर लोहियानगर पुलिस की तरफ से ही एफआईआर दर्ज कराई गई है, जिसमें पंचायतनामे की सच्चाई को दर किनार करते हुए पटाखा गोदाम का नाम गायब हो गया। एफआईआर में सिर्फ साबुन फैक्टरी में हुए विस्फोट की वजह से मौत दिखाई गई है। सवाल ये है कि पुलिस पांच घंटे में अपने ही पंचायतनामे को कैसे भूल गई। बृहस्पतिवार को इन अज्ञात लाशों वाले पंचायतनामों पर मृतकों के नाम लिखे गए तो ये सच भी उजागर हो गया।

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