(बेरोजगार युवाओं को समर्पित कविता)


जब लोग तुम्हें देख कर अनदेखा करने लगे, 

तो समझ लेना बेकार हो तुम, 

जब तुम्हारे होने न होने से कोई फर्क न पड़े, 

तो समझ लेना बेरोजगार हो तुम। 


परिवार और समाज की जो इतनी चिंता करते हो, 

इन्हे तुम नहीं तुम्हारी सफलता प्यारी है, 

सच बताना तुम्हें भी तो खुद से नहीं, 

अपनी सफलता से ही तो प्यार है। 


यदि ऐसा नहीं है तो पहले खुद से प्यार करो, 

सफलता असफलता तो जीवन का हिस्सा है, 

निराश न हो खुद के लिए लड़ना सीखो, 

और खुद पे विश्वास रखो सफल हो जाओगे। 


अभिप्रेरणा जो बाहर ढूँढ़ रहे हो, 

वह तो तुम्हारे भीतर ही है, 

सबकी चिंता छोड़ कर खुद की चिंता करो, 

और खुद पे विश्वास रखो सफल हो जाओगे।। 



                             - धीरज अग्रहरि

             ( काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)

2..…

बेहतर जीवन के चक्कर मे मैंने क्या नहीं बदला, 

घर बदला, पिन कोड बदला, अपने बदले, 

लोग बदले, दोस्त बदले, लिबास बदले, 

लेकिन अभी तक घर के हालात नहीं बदले। 


लोगों को लगता है कि मैं कुछ करना नहीं चाहता, 

दुनिया मे ऐसा कौन है जो सफलता नहीं चाहता, 

मेरे माँ- बाप को मुझसे बड़ी है उम्मीदें, 

ये उम्मीदों को तोड़कर जीना कौन चाहता। 


मुझे गुनाहगार की तरह देखते हो, 

क्या मैंने कोई गुनाह किया है? 

अगर सपना देखना गुनाह है तो, 

तुम भी उतने ही गुनाहगार हो। 


असफलता एक शब्द मात्र है, 

इससे बढ़कर कुछ भी नहीं, 

समाज का ठेका कब से लेने लगे? 

ये समाज सिर्फ तुम्हारा तो नहीं। 


मैं हारा नहीं हूं अभी मैंने लड़ना सीखा है, 

मैंने अपनी आंखों मे बेहतर जीवन का सपना देखा है, 

सपने को पूरा करने मे मैं अपना पूरा जोर लगाऊंगा, 

वादा करता हूं मैं खुद से एक दिन सफल हो जाऊंगा। 


सफल होकर मैं खुद की एक दुनिया बनाऊंगा, 

आने वाली पीढ़ी को संघर्ष करना सिखाऊंगा, 

लोग परस्पर सहयोग से आगे बढ़े ऐसा पाठ पढ़ाऊंगा, 

समाज को बेहतर बनाने में अपनी भूमिका निभाऊंगा।। 



                  © धीरज अग्रहरि 

             ( काशी हिन्दू विश्वविद्यालय )