प्रभु श्री राम के विवाह और राज्याभिषेक की कथा सुन भक्ति रस में डूबे श्रोता

 अतरौलिया। मोहम्मद शमीम की रिपोर्ट|प्रभु श्री राम के विवाह और राज्याभिषेक की कथा सुन भक्ति रस में डूबे श्रोता। बता दे कि विगत तीन वर्षों से लोक कल्याण हेतु श्री नवदुर्गा सेवा समिति गोरहरपुर के तत्वाधान में आयोजित नव दिवसीय श्री राम कथा के पांचवें और छठवें दिन श्रोताओं का हुजूम उमड़ पड़ा।  गीत संगीत के माध्यम से भक्ति रस में डूबे श्रोता रात्रि



10:00 बजे तक कथा का आनंद उठाते रहे। कथा व्यास भागवताचार्य पंडित चंद्रेश जी महाराज ने प्रभु श्री राम विवाह का सुंदर वर्णन प्रस्तुत कर श्रोताओं का मन मोह लिया। कथा के माध्यम से उन्होंने कहा कि राजा जनक के दरबार में भगवान शिव का धनुष रखा हुआ था। एक दिन सीता ने घर की सफाई करते हुए उसे उठाकर दूसरी जगह रख दिया। उसे देख राजा जनक को आश्चर्य हुआ, क्योंकि धनुष किसी से उठता ही नहीं था। राजा ने प्रतिज्ञा किया कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से सीता का विवाह होगा। सीता के स्वयंवर के लिए घोषणाएं कर दी गई। स्वयंवर में भगवान राम और लक्ष्मण ने भी प्रतिभाग किया। वहां पर कई और राजकुमार भी आए हुए थे पर कोई भी शिव जी के धनुष को नहीं उठा सका।

राजा जनक हताश हो गए और उन्होंने कहा कि “क्या कोई भी मेरी पुत्री के योग्य नहीं है?” तब महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने को कहा। गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने लगे और धनुष टूट गया और इस प्रकार सीता जी का विवाह राम से हुआ। राजा दशरथ के पास संदेश वाहक ने इस विवाह का संदेश लेकर पहुंचा और पूरे अयोध्या नगरी में मंगल गान होने लगे। राम और सीता को विवाह के बाद बहुत से कष्टों को उठाना पड़ा था। राम को राजा दशरथ ने 14 वर्षों का वनवास दे दिया था। जब सीता गर्भवती हुई तो राम ने उनका त्याग कर दिया। दोनों का जीवन कष्टों से भरा हुआ था। इसलिए भारत के कई हिस्सों में विवाह पंचमी के दिन विवाह नहीं किया जाता है। उधर भगवान के राजतिलक की तैयारी चलने लगी। जनकपुर से विवाह कर अयोध्या लौटने पर हर तरफ उत्सव मनाया जाने लगा। महाराजा दशरथ भगवान राम के राजतिलक की घोषणा करते हैं। राजतिलक की सूचना मिलने पर मंथरा महारानी कैकई को बहला फुसलाकर महाराजा दशरथ से अपना वरदान मांगने के लिए तैयार कर लेती है। इससे महारानी कैकई महाराजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांगती हैं। यह सुनकर महाराजा दशरथ मूर्छित हो जाते हैं। इस प्रकार यहीं पर कथा को विराम दिया जाता है।

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